||भगवान शंकर पर गलांतिका (मटके पर जल रख कर धारा)||
पुराणों के अनुसार वैशाख मास को ब्रह्मा जी ने सब मासों में श्रेष्ठ बताया है,बिल्कुल ऐसे ही जैसे सतयुग के समान कोई दूसरा युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं उसी भांति वैशाख मास के समान कोई महीना नहीं है।
इस माह में वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से वैशाख शुक्ल पूर्णिमा तक जल चढ़ाने तथा जल पिलाने का सौभाग्य प्राप्त होता है। क्योंकि इस माह को युगादि, कल्पादि, सृष्टि आदि युग के नाम से जाना जाता है। इसी माह में विशेष व्रत त्योहार एवं पर्वकाल आते हैं। आध्यात्मिक रूप से भगवान शिव को जल अर्पित और उनको संतृप्त करना ये सभी सात्विक कर्म मनुष्य जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
वैशाख में भगवान शिव को या शिवलिंग पर जल चढ़ाने अथवा गलंतिका बंधन करने का (पानी की मटकी बांधना) विशेष पुण्य बताया जाता है। धर्मशास्त्र में इस माह का विशेष उल्लेख किया गया है जिसके अन्तर्गत चौराहों पर प्याऊ लगाना, छायादार वृक्ष की रक्षा करना, पशु पक्षी के खान-पान की विशेष व्यवस्था करवाना, आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भगवान शिव को सतत जलधारा अर्पित करना तथा श्रद्धा से भगवान शिव को संतृप्त करना ये सभी सात्विक कर्म मनुष्य जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं। साथ ही जल चढ़ाने के माध्यम से पंचतत्त्वों को संतुलित करते हुए मानसिक तथा वैचारिक हिंसा से मुक्ति दिलाते हैं। इस दृष्टि से यह माह विशेष पुण्य फलदायी माना गया है।
भगवान शंकर ने उस विष को पीकर सृष्टि को बचाया था। मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास में महादेव पर विष का असर होने लगता है। उनके शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है। उस तापमान को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग पर मटकी बांधी जाती है। जिसमें से बूंद-बूंद टपकता जल शंकर को ठंडक देता है।
पं सूरज मिश्र बरपाली (रायगढ़)