इस वर्ष होगा सारंगढ़ का गढ़ उत्सवऐतिहासिक गढ़ उत्सव शुक्रवार को मनाया जाएगा
सारंगढ़। छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति में उपेक्षित सारंगढ़ अंचल में दशहरा उत्सव अनोखे ढंग से मनाया जाता है। यहां पर रियासतकाल से ही विजयदशमी पर गढ़ विच्छेदन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। गढ़ उत्सव सैकड़ों साल पुराना है।वहीं इस वर्ष गढ़ विच्छेद शुक्रवार को विजयादशमी के दिन मनाया जाएगा यहां पिछले वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते गढ़ उत्सव नहीं किया गया था और परंपरा गत रखते हुए विधि विधान से पूजा अर्चना किया गया और रावण का पुतला दहन करते हुए परंपरा को जारी रखा जिसे इस वर्ष इस परंपरा को जारी रखा जा रहा है और यह गढ़ उत्सव आने वाले विजयादशमी के दिन मनाया जाएगा वही विगत दिनों सोशल मीडिया ओं में चल रहा था कि इस वर्ष गढ़ विच्छेद उत्सव नहीं मनाया जाएगा लेकिन नगर के खेल भाटा मैदान में मिट्टी के किले की मरम्मत को देखते हुए इस वर्ष विजयादशमी के दिन गढ़ उत्सव मनाया जाएगा और हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गढ़ विच्छेद के साथ रावण दहन भी किया जाएगा । वही यहां पर मिट्टी के टीले रूपी गढ़ पर सैनिक रूपी रक्षक रहते हैं। वहीं गढ़ के नीचे पानी भरा गड्ढा रहता है जहां प्रतिभागी मिट्टी के टीले को नुकीले औजार से खोदकर ऊपर चढ़ते हैं। जो प्रतिभागी सुरक्षा प्रहरियों से जहोद्दोजहद कर गढ़ में चढऩे में सफल होता है उसे गढ़ विजेता की पदवी दी जाती है। इस उत्सव को देखने आसपास के लगभग हजारों की भीड़ जुटती है। इस उत्सव स्थान पर विशाल मेला भी लगता है।छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव की विभिन्न परंपराओं के बीच सारंगढ़ अंचल का दशहरा अपनी अलग पहचान और गौरवगाथा समेटे है। इस दशहरा उत्सव का आयोजन लगभग सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है। इसका आयोजन आज भी राजपरिवार गिरीविलास पैलेस में होता आ रहा है।सारंगढ़ के प्रसिद्ध खेलभाठा स्टेडियम के पास गढ़ बना है। यह गढ़ लगभग सैकड़ों वर्ष पुराना मिट्टी का एक टीला है। इसके सामने में 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होती जाती है और लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चौड़ी रह जाती है।
यहां ऊपर पीछे सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीले से ऊपर रहते हैं। इस टीले की स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चौड़े तथा 10 फीट गहरे तालाबनुमा गड्ढे में पानी भरा रहता है। इस गढ़ में नुकीले हथियार से गड्ढा कर ऊपर चढ़ते हैं। पास में सीमारेखा बनी रहती है जिसके अंदर प्रतिभागी को ऊपर चढऩा रहता है और ऊपर के सुरक्षा प्रहरियों से लोहा लेना होता है। पूर्व रियासतकाल में यहां की सेना रहती थी जबकि आजकल ऊपर वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते हैं। इस आयोजन का शुभारंभ सारंगढ़ राजपरिवार के राजा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन में छोड़कर करते हैं।
सैकड़ों वर्ष पुरानी है यह परंपरा
सारंगढ़ रियासत द्वारा आयोजित विजयदशमी पर गढ़ उत्सव लगभग सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा है। जानकार बताते हैं कि रियासत काल में सैनिकों को उत्साहित करने राजपरिवार द्वारा सैनिकों के बीच इस प्रतियोगिता का आयोजन करते थे। इसमें विजेता सैनिक को वीर की पदवी दी जाती थी। राजदरबार में उसे विशेष स्थान प्रदान किया जाता था। सैनिकों के बीच में स्वस्थ प्रतियोगिता के रूप में इस गढ़ उत्सव का आयोजन किया जाता है।
गढ़ उत्सव को सरंक्षित करना जरूरी
सारंगढ़ अंचल में मनाया जाने वाला गढ़ उत्सव पूरे प्रदेश में अनोखा है। इस उत्सव को देखने सारंगढ़ अंचल के साथ सरसींवा, भटगांव, बिलाईगढ़, चंद्रपुर, सरिया, बरमकेला और कोसीर पट्टी से काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। आयोजन को देखने के बाद घर पहुंचने वाले युवाओं की घर में पूजा अर्चना की जाती है।
इस गौरवशाली आयोजन की गरिमा बनाए रखने तथा पूरे विश्व में इस परंपरा को एक विशेष पहचान दिए जाने गढ़ उत्सव को संस्कृति विभाग को अपने हाथ में लेना चाहिए। सारंगढ़ रियासत का यह ऐतिहासिक गढ़ उत्सव राजपरिवार द्वारा ही संचालित है। ऐसे में इसे शासन अपने हाथ में लेकर आयोजन कराए तो यहां की यश और कीर्ति और दूर दूर तक पहुंचेगी।Show quoted text